ट्रेड निवेश काफी उतार-चढ़ाव वाला रहा यह साल
साल 2019 के दौरान शेयर बाजार में कई बार उतार-चढ़ाव देखने को मिला. कई घटनाओं ने बाजार को दिशा दी. इनमें आम चुनाव, रिजर्व बैंक और सरकार के बीच टकरवा, अर्थव्यवस्था में कमजोरी और कॉर्पोरेट टैक्स की दर में कटौती अहम हैं. आइए ऐसी ही घटनआओं पर डालते हैं नजर:
1 दूसरी बार प्रधानमंत्री बने मोदी
लोकसभा चुनाव साल 2019 में शेयर बाजार के लिए बहुत अहम रहा. चुनावों में नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाले एनडीए को जबर्दस्त जीत मिली. मोदी दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने. चुनावी नतीजों के दिन शेयर बाजार ने 1,422 अंक की छलांग लगाई. हालांकि, बाद में बाजार में मुनाफावसूली हावी हो गई.
2 कॉर्पोरेट टैक्स की दरों में कटौती
कॉर्पोरेट टैक्स की दरों में कटौती शेयर बाजार पर असर डालने वाली दूसरी सबसे बड़ी घटना रही. सरकार ने सितंबर में इसका ऐलान किया. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने टैक्स घटाकर कंपनियों को 1.45 लाख करोड़ रुपये की राहत दी. इस वजह से दो सत्रों में ही सेंसेक्स और निफ्टी में क्रमश: 3,000 और 1,000 अंक की तेजी आई.
3 रिजर्व बैंक से सरकार को मिला बड़ा फंड
लंबी जद्दोजहद और कई इस्तीफों के बाद भारतीय रिजर्व बैंक ने बिमल जालान समिति के सुझावनों को मान लिया. उसने साल 2018-19 में सरकार के खाते में 1.76 लाख करोड़ रुपये डाले. इससे सरकार को बड़ी राहत मिली.
4 विकास दर में गिरावट
सितंबर तिमाही में देश की आर्थिक वृद्धि दर गिरकर 4.5 फीसदी पर आ गई. यह जीडीपी ग्रोथ का छह साल का न्यूनतम स्तर है. अर्थव्यवस्था में चौतरफा कमजोरी है. मांग में गिरावट, घटता उत्पादन और कम खर्च ने अर्थव्यवस्था की रफ्तार सुस्त कर दी है. फैक्ट्री आउटपुट बीते तीन महीनों से शून्य से नीचे बना हुआ है.
5 रिजर्व बैंक ने लगातार घटाई ब्याज दर
इस साल सरकार रिजर्व बैंक ने लगातार ब्याज दरों में कटौती की. उसने अपनी छह मौद्रिक नीति में रेपो रेट को 135 बेसिस अंक घटा दिया. इससे रेपो रेट 5.15 फीसदी पर आ गया. हालांकि, दिसंबर की बैठक में आरबीआई ने ब्याज दर नहीं घटाई.
6 गाड़ियों की बिक्री घटी
ऑटो सेक्टर के लिए साल 2019 काफी बुरा रहा. कंपनियों की बिक्री में भारी गिरावट आई. मजबूरन उन्हें उत्पादन घटाना पड़ा. इसके चलते कंपनियों के शेयरों का प्रदर्शन भी फीका रहा. निफ्टी ऑटो इंडेक्स 12 फीसदी तक फिसला. हालांकि, त्योहारी सीजन में इक्का-दुक्का ऑटो कंपनियों के शेयरों में तेजी देखने को मिली.
7 टेलिकॉम सेक्टर की दिक्कतें
सितंबर तिमाही में टेलिकॉम कंपनियों ने जबरदस्त घाटा दर्ज किया. सुप्रीम कोर्ट के एजीआर से जुड़े फैसले से इन कंपनियों पर 1.47 लाख करोड़ रुपये की देनदारी बन गई है. कंपनियों को सरकार से कोई राहत नहीं मिली. मजबूरन उन्हें टैरिफ में वृद्धि करनी पड़ी.
8 अमेरिका-चीन का ट्रेड वॉर
अमेरिका और चीन के बीच 17 महीनों से ट्रेड वॉर चल रहा था. दिसंबर में इस पर ब्रेक लगा. दोनों देश पहले चरण के समझौते पर सहमत हो गए हैं. इस ट्रेड वॉर का असर भारत सहित दुनिया भर के बाजारों पर पड़ा.
9 यस बैंक का संकट
पूंजी के लिए जूझ रहे यस बैंक के शेयरों के निवेशकों के लिए यह साल अच्छा नहीं रहा. राणा कपूर को बैंक के सीईओ पद से इस्तीफा देना पड़ा. डूबे कर्ज ने यस बैंक के लिए बड़ी समस्या पैदा कर दी. इस साल यह शेयर 72 फीसदी तक टूटा. नतीजा यह हुआ कि यस बैंक सेंसेक्स की 30 शेयरों की सूची से बाहर हो गया.
10 आम बजट के एलान
इस साल आम बजट चुनावों के बाद जुलाई में पेश हुआ. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कई ऐलान किए, जिसमें ज्यादा अमीरों पर सरचार्ज बढ़ाने का फैसला शामिल था. इससे घरेलू शेयर बाजार में बिकवाली हावी हो गई. विदेशी निवेशकों ने 20,000 करोड़ रुपये की निकासी की. बाद में सरकार ने फैसला वापस लिया.
11 एनबीएफसी का संकट
पिछले साल सितंबर में आईएलएंडएफएस के डिफॉल्ट के बाद एनबीएफसी सेक्टर संकट में घिर गया. इससे बाजार में लिक्विडिटी की कमी हो गई. डीएचएफएल समेत कई कंपनियां डिफॉल्ट को मजबूर हो गई. यह हाउसिंग फाइनेंस कंपनी दिवालियापन की प्रक्रिया का सामना कर रही है.
12 बैंकों को सरकार से मिली पूंजी
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सरकारी बैंकों में 70,000 करोड़ रुपये की पूंजी डालने का एलान किया. बीते पांच साल में इन बैंकों को 3.19 लाख करोड़ रुपये की पूंजी मिली है, जिसमें 2.5 लाख करोड़ रुपये सरकार ने दिए हैं. बाकी पैसा बैंकों ने खुद जुटाया है.
13 इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर को 100 लाख करोड़ रुपये
मोदी सरकार ने दूसरी बार सत्ता में आने पर इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर के लिए 100 लाख करोड़ रुपय के पूंजीगत खर्च का ऐलान किया. यदि अगले पांच साल में यह पैसा खर्च होता है तो यह निर्माण और उत्पादन से जुड़े शेयरों पर भी इसका असर दिखेगा. सरकार ने इसके लिए कई योजनाएं शुरू की हैं.
14 बैंकों का विलय
इस साल वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कई सरकारी बैंकों के विलय का ऐलान किया. 10 छोटे सरकारी बैंकों का विलय चार बड़े बैंकों में होगा. इससे देश में सरकारी बैंकों की संख्या 27 से घटकर 12 रह जाएगी.
साल 2019 के दौरान शेयर बाजार में कई बार उतार-चढ़ाव देखने को मिला. कई घटनाओं ने बाजार को दिशा दी. इनमें आम चुनाव, रिजर्व बैंक और सरकार के बीच टकरवा, अर्थव्यवस्था में कमजोरी और कॉर्पोरेट टैक्स की दर में कटौती अहम हैं. आइए ऐसी ही घटनआओं पर डालते हैं नजर:
1 दूसरी बार प्रधानमंत्री बने मोदी
लोकसभा चुनाव साल 2019 में शेयर बाजार के लिए बहुत अहम रहा. चुनावों में नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाले एनडीए को जबर्दस्त जीत मिली. मोदी दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने. चुनावी नतीजों के दिन शेयर बाजार ने 1,422 अंक की छलांग लगाई. हालांकि, बाद में बाजार में मुनाफावसूली हावी हो गई.
2 कॉर्पोरेट टैक्स की दरों में कटौती
कॉर्पोरेट टैक्स की दरों में कटौती शेयर बाजार पर असर डालने वाली दूसरी सबसे बड़ी घटना रही. सरकार ने सितंबर में इसका ऐलान किया. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने टैक्स घटाकर कंपनियों को 1.45 लाख करोड़ रुपये की राहत दी. इस वजह से दो सत्रों में ही सेंसेक्स और निफ्टी में क्रमश: 3,000 और 1,000 अंक की तेजी आई.
3 रिजर्व बैंक से सरकार को मिला बड़ा फंड
लंबी जद्दोजहद और कई इस्तीफों के बाद भारतीय रिजर्व बैंक ने बिमल जालान समिति के सुझावनों को मान लिया. उसने साल 2018-19 में सरकार के खाते में 1.76 लाख करोड़ रुपये डाले. इससे सरकार को बड़ी राहत मिली.
4 विकास दर में गिरावट
सितंबर तिमाही में देश की आर्थिक वृद्धि दर गिरकर 4.5 फीसदी पर आ गई. यह जीडीपी ग्रोथ का छह साल का न्यूनतम स्तर है. अर्थव्यवस्था में चौतरफा कमजोरी है. मांग में गिरावट, घटता उत्पादन और कम खर्च ने अर्थव्यवस्था की रफ्तार सुस्त कर दी है. फैक्ट्री आउटपुट बीते तीन महीनों से शून्य से नीचे बना हुआ है.
5 रिजर्व बैंक ने लगातार घटाई ब्याज दर
इस साल सरकार रिजर्व बैंक ने लगातार ब्याज दरों में कटौती की. उसने अपनी छह मौद्रिक नीति में रेपो रेट को 135 बेसिस अंक घटा दिया. इससे रेपो रेट 5.15 फीसदी पर आ गया. हालांकि, दिसंबर की बैठक में आरबीआई ने ब्याज दर नहीं घटाई.
6 गाड़ियों की बिक्री घटी
ऑटो सेक्टर के लिए साल 2019 काफी बुरा रहा. कंपनियों की बिक्री में भारी गिरावट आई. मजबूरन उन्हें उत्पादन घटाना पड़ा. इसके चलते कंपनियों के शेयरों का प्रदर्शन भी फीका रहा. निफ्टी ऑटो इंडेक्स 12 फीसदी तक फिसला. हालांकि, त्योहारी सीजन में इक्का-दुक्का ऑटो कंपनियों के शेयरों में तेजी देखने को मिली.
7 टेलिकॉम सेक्टर की दिक्कतें
सितंबर तिमाही में टेलिकॉम कंपनियों ने जबरदस्त घाटा दर्ज किया. सुप्रीम कोर्ट के एजीआर से जुड़े फैसले से इन कंपनियों पर 1.47 लाख करोड़ रुपये की देनदारी बन गई है. कंपनियों को सरकार से कोई राहत नहीं मिली. मजबूरन उन्हें टैरिफ में वृद्धि करनी पड़ी.
8 अमेरिका-चीन का ट्रेड वॉर
अमेरिका और चीन के बीच 17 महीनों से ट्रेड वॉर चल रहा था. दिसंबर में इस पर ब्रेक लगा. दोनों देश पहले चरण के समझौते पर सहमत हो गए हैं. इस ट्रेड वॉर का असर भारत सहित दुनिया भर के बाजारों पर पड़ा.
9 यस बैंक का संकट
पूंजी के लिए जूझ रहे यस बैंक के शेयरों के निवेशकों के लिए यह साल अच्छा नहीं रहा. राणा कपूर को बैंक के सीईओ पद से इस्तीफा देना पड़ा. डूबे कर्ज ने यस बैंक के लिए बड़ी समस्या पैदा कर दी. इस साल यह शेयर 72 फीसदी तक टूटा. नतीजा यह हुआ कि यस बैंक सेंसेक्स की 30 शेयरों की सूची से बाहर हो गया.
10 आम बजट के एलान
इस साल आम बजट चुनावों के बाद जुलाई में पेश हुआ. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कई ऐलान किए, जिसमें ज्यादा अमीरों पर सरचार्ज बढ़ाने का फैसला शामिल था. इससे घरेलू शेयर बाजार में बिकवाली हावी हो गई. विदेशी निवेशकों ने 20,000 करोड़ रुपये की निकासी की. बाद में सरकार ने फैसला वापस लिया.
11 एनबीएफसी का संकट
पिछले साल सितंबर में आईएलएंडएफएस के डिफॉल्ट के बाद एनबीएफसी सेक्टर संकट में घिर गया. इससे बाजार में लिक्विडिटी की कमी हो गई. डीएचएफएल समेत कई कंपनियां डिफॉल्ट को मजबूर हो गई. यह हाउसिंग फाइनेंस कंपनी दिवालियापन की प्रक्रिया का सामना कर रही है.
12 बैंकों को सरकार से मिली पूंजी
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सरकारी बैंकों में 70,000 करोड़ रुपये की पूंजी डालने का एलान किया. बीते पांच साल में इन बैंकों को 3.19 लाख करोड़ रुपये की पूंजी मिली है, जिसमें 2.5 लाख करोड़ रुपये सरकार ने दिए हैं. बाकी पैसा बैंकों ने खुद जुटाया है.
13 इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर को 100 लाख करोड़ रुपये
मोदी सरकार ने दूसरी बार सत्ता में आने पर इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर के लिए 100 लाख करोड़ रुपय के पूंजीगत खर्च का ऐलान किया. यदि अगले पांच साल में यह पैसा खर्च होता है तो यह निर्माण और उत्पादन से जुड़े शेयरों पर भी इसका असर दिखेगा. सरकार ने इसके लिए कई योजनाएं शुरू की हैं.
14 बैंकों का विलय
इस साल वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कई सरकारी बैंकों के विलय का ऐलान किया. 10 छोटे सरकारी बैंकों का विलय चार बड़े बैंकों में होगा. इससे देश में सरकारी बैंकों की संख्या 27 से घटकर 12 रह जाएगी.














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